तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
जिस से मरता हूँ उसी ज़हर से अच्छा हो जाऊँ
अहमद कमाल परवाज़ी
मैं ने समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले
तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी
अहमद नदीम क़ासमी
मर जाता हूँ जब ये सोचता हूँ
मैं तेरे बग़ैर जी रहा हूँ
अहमद नदीम क़ासमी
पा कर भी तो नींद उड़ गई थी
खो कर भी तो रत-जगे मिले हैं
अहमद नदीम क़ासमी
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ख़ुश्क ख़ुश्क सी पलकें और सूख जाती हैं
मैं तिरी जुदाई में इस तरह भी रोता हूँ
अहमद राही
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किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है
किसे बताएँ हमारा जो हाल हो गया है
अजमल सिराज
आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती
अकबर इलाहाबादी