आप के बा'द हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
गुलज़ार
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जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है
गुलज़ार
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कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
गुलज़ार
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रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले
गुलज़ार
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यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
रात भर ताला-ए-बेदार ने सोने न दिया
हैदर अली आतिश
जुदाई की रुतों में सूरतें धुँदलाने लगती हैं
सो ऐसे मौसमों में आइना देखा नहीं करते
हसन अब्बास रज़ा
कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले
रात भर कौन तिरी याद में बेदार रहा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान