जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
नासिर काज़मी
याद है अब तक तुझ से बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल
नासिर काज़मी
जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो
ये दाग़ वो है कि दुश्मन को भी नसीब न हो
from their beloved separated none should be
such a fate should not befall even my enemy
नज़ीर अकबराबादी
उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
निदा फ़ाज़ली
कोई यहाँ से चल दिया रौनक़-ए-बाम-ओ-दर नहीं
देख रहा हूँ घर को मैं घर है मगर वो घर नहीं
नूह नारवी
ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे
क़तील शिफ़ाई
यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना
क़तील शिफ़ाई