अब नहीं लौट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला
अख़्तर नज़्मी
ग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखी
देखें दिखलाए अभी गर्दिश-ए-दौराँ क्या क्या
अख़्तर शीरानी
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
अल्लामा इक़बाल
क्यूँ बढ़ाते हो इख़्तिलात बहुत
हम को ताक़त नहीं जुदाई की
अल्ताफ़ हुसैन हाली
उस के जाते ही ये क्या हो गई घर की सूरत
न वो दीवार की सूरत है न दर की सूरत
अल्ताफ़ हुसैन हाली
चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़े मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िर
न नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ
अमीर ख़ुसरो
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ रोज़-ए-वसलत चू उम्र कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ
अमीर ख़ुसरो