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Judai शायरी | शाही शायरी

Judai

93 शेर

दो घड़ी उस से रहो दूर तो यूँ लगता है
जिस तरह साया-ए-दीवार से दीवार जुदा

अहमद फ़राज़




हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र बार-हा देखा न जाए

अहमद फ़राज़




हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी

अहमद फ़राज़




इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की

अहमद फ़राज़




किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

अहमद फ़राज़




मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर
ये सोच ले कि मैं भी तिरी ख़्वाहिशों में हूँ

अहमद फ़राज़




उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ

अहमद फ़राज़