हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता
हर किसी की नज़र नहीं होती
इब्न-ए-इंशा
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हुस्न बना जब बहती गंगा
इश्क़ हुआ काग़ज़ की नाव
इब्न-ए-सफ़ी
हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब
फूल ख़ुश्बू से ख़फ़ा हो जैसे
इफ़्तिख़ार आज़मी
उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
इफ़्तिख़ार नसीम
अफ़्सुर्दगी भी हुस्न है ताबिंदगी भी हुस्न
हम को ख़िज़ाँ ने तुम को सँवारा बहार ने
इज्तिबा रिज़वी
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
तमाम मज़हर-ए-फ़ितरत तिरे ग़ज़ल-ख़्वाँ हैं
ये चाँदनी भी तिरे जिस्म का क़सीदा है
इज़हार असर
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