EN اردو
ये दास्ताँ है शहीदों की ख़ूँ-चकीदा है | शाही शायरी
ye dastan hai shahidon ki KHun-chakida hai

ग़ज़ल

ये दास्ताँ है शहीदों की ख़ूँ-चकीदा है

इज़हार असर

;

ये दास्ताँ है शहीदों की ख़ूँ-चकीदा है
क़लम भी दस्त-ए-मुअर्रिख़ में सर-बुरीदा है

हयात ऐसी ज़ुलेख़ा कि आज का यूसुफ़
गुनाह-गार है और पैरहन-दरीदा है

लहू जलाओ चराग़ों में रौशनी के लिए
हमारे दौर का सूरज तो शब-गज़ीदा है

दबा दबा सा ये तूफ़ाँ घटी घटी हलचल
हवाओं में कोई पैग़ाम ना-रसीदा है

तमाम मज़हर-ए-फ़ितरत तिरे ग़ज़ल-ख़्वाँ हैं
ये चाँदनी भी तिरे जिस्म का क़सीदा है

न बुझ सकेगी मिरी प्यास आँसुओं से 'असर'
ये अब्र क्यूँ मिरी हालत पे आब-दीदा है