EN اردو
हुस्न शायरी | शाही शायरी

हुस्न

110 शेर

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है

कैफ़ भोपाली




तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले
तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले

कैफ़ भोपाली




ज़माना हुस्न नज़ाकत बला जफ़ा शोख़ी
सिमट के आ गए सब आप की अदाओं में

कालीदास गुप्ता रज़ा




हमेशा आग के दरिया में इश्क़ क्यूँ उतरे
कभी तो हुस्न को ग़र्क़-ए-अज़ाब होना था

करामत अली करामत




रौशनी के लिए दिल जलाना पड़ा
कैसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बअ'द

ख़ुमार बाराबंकवी




वो तग़ाफ़ुल-शिआर क्या जाने
इश्क़ तो हुस्न की ज़रूरत है

ख़ुर्शीद रब्बानी




है साया चाँदनी और चाँद मुखड़ा
दुपट्टा आसमान-ए-आसमाँ है

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी