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उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा | शाही शायरी
uske chehre ki chamak ke samne sada laga

ग़ज़ल

उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा

इफ़्तिख़ार नसीम

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उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा

जिस घड़ी आया पलट कर इक मिरा बिछड़ा हुआ
आम से कपड़ों में था वो फिर भी शहज़ादा लगा

हर घड़ी तय्यार है दिल जान देने के लिए
उस ने पूछा भी नहीं ये फिर भी आमादा लगा

कारवाँ है या सराब-ए-ज़िंदगी है क्या है ये
एक मंज़िल का निशाँ इक और ही जादा लगा

रौशनी ऐसी अजब थी रंग-भूमी की 'नसीम'
हो गए किरदार मुदग़म कृष्ण भी राधा लगा