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हुस्न शायरी | शाही शायरी

हुस्न

110 शेर

वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं
तमाम जिस्म को कासा बना के चलना है

अहमद कमाल परवाज़ी




महकते फूल सितारे दमकता चाँद धनक
तिरे जमाल से कितनों ने इस्तिफ़ादा क्या

अहमद ख़याल




जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा

अहमद नदीम क़ासमी




इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है

अकबर इलाहाबादी




ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल
इंसाँ करे अगर न तिरी चाह क्या करे

this loveliness, this mischief, this style this beauty too
what can a person do save fall in love with you

अकबर इलाहाबादी




मुझी को पर्दा-ए-हस्ती में दे रहा है फ़रेब
वो हुस्न जिस को किया जल्वा-आफ़रीं मैं ने

अख़्तर अली अख़्तर




एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
शम्अ भी बुझती है परवानों के जल जाने के ब'अद

अख़तर मुस्लिमी