हुस्न इक दिलरुबा हुकूमत है
इश्क़ इक क़ुदरती ग़ुलामी है
अब्दुल हमीद अदम
इश्क़ है बे-गुदाज़ क्यूँ हुस्न है बे-नियाज़ क्यूँ
मेरी वफ़ा कहाँ गई उन की जफ़ा को क्या हुआ
अब्दुल मजीद सालिक
कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे की है
चाँद सी सूरत दुपट्टा सर पे यक-तारे का है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया
उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के
आदिल मंसूरी
ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
तुम नई सुब्ह का आग़ाज़ करोगे शायद
अफ़रोज़ आलम
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं
अहमद फ़राज़
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चराग़
अहमद फ़राज़