अजब तेरी है ऐ महबूब सूरत
नज़र से गिर गए सब ख़ूबसूरत
हैदर अली आतिश
न पाक होगा कभी हुस्न ओ इश्क़ का झगड़ा
वो क़िस्सा है ये कि जिस का कोई गवाह नहीं
हैदर अली आतिश
हुस्न है काफ़िर बनाने के लिए
इश्क़ है ईमान लाने के लिए
हैरत गोंडवी
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी
हकीम नासिर
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किस के चेहरे से उठ गया पर्दा
झिलमिलाए चराग़ महफ़िल के
हसन बरेलवी
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अल्लाह-री जिस्म-ए-यार की ख़ूबी कि ख़ुद-ब-ख़ुद
रंगीनियों में डूब गया पैरहन तमाम
हसरत मोहानी
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रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम
हसरत मोहानी