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हुस्न शायरी | शाही शायरी

हुस्न

110 शेर

पूछो न अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दो
सुनते हैं कि शबनम के क़तरे फूलों को निखारा करते हैं

wipe not the droplets from your face, let beauty's lustre grow
drops of dew when flowers grace, enhance their freshness so

क़मर जलालवी




तेरे क़ुर्बान 'क़मर' मुँह सर-ए-गुलज़ार न खोल
सदक़े उस चाँद सी सूरत पे न हो जाए बहार

क़मर जलालवी




उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन
देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं

क़तील शिफ़ाई




आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले

on seeing her own reflection she is moved to say
ere their time, my paramours shall perish this day

रशीद रामपुरी




कोह संगीन हक़ाएक़ था जहाँ
हुस्न का ख़्वाब तराशा हम ने

रविश सिद्दीक़ी




चाँदनी रातों में चिल्लाता फिरा
चाँद सी जिस ने वो सूरत देख ली

रिन्द लखनवी




कश्मीर की वादी में बे-पर्दा जो निकले हो
क्या आग लगाओगे बर्फ़ीली चटानों में

साग़र आज़मी