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इक अख़्गर-ए-जमाल फ़रोज़ाँ ब-शक्ल-ए-दिल | शाही शायरी
ek aKHgar-e-jamal farozan ba-shakl-e-dil

ग़ज़ल

इक अख़्गर-ए-जमाल फ़रोज़ाँ ब-शक्ल-ए-दिल

इज्तिबा रिज़वी

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इक अख़्गर-ए-जमाल फ़रोज़ाँ ब-शक्ल-ए-दिल
फेंका इधर भी हुस्न-ए-तजल्ली-निसार ने

अफ़्सुर्दगी भी हुस्न है ताबिंदगी भी हुस्न
हम को ख़िज़ाँ ने तुम को सँवारा बहार ने

इस दिल को शौक़-ए-दीद में तड़पा के कर दिया
क्या उस्तुवार वा'दा-ए-ना-उस्तवार ने

जल्वे की भीक दे के वो हटने लगे थे ख़ुद
दामन पकड़ लिया निगह-ए-ए'तिबार ने

गेसू ग़ुबार-ए-राह-ए-तमन्ना से अट न जाएँ
सहरा में आप निकले हैं हम को पुकारने