क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
मेरी निगाह-ए-शौक़ भी कुछ कम नहीं मगर
फिर भी तिरा शबाब तिरा ही शबाब है
जिगर मुरादाबादी
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
जिगर मुरादाबादी
इस दिल में तिरे हुस्न की वो जल्वागरी है
जो देखे है कहता है कि शीशे में परी है
जोश मलीहाबादी
दाग़-ए-जिगर का अपने अहवाल क्या सुनाऊँ
भरते हैं उस के आगे शम्-ओ-चराग़ पानी
जोशिश अज़ीमाबादी
हुस्न और इश्क़ का मज़कूर न होवे जब तक
मुझ को भाता नहीं सुनना किसी अफ़्साने का
जोशिश अज़ीमाबादी
हैं लाज़िम-ओ-मलज़ूम बहम हुस्न ओ मोहब्बत
हम होते न तालिब जो वो मतलूब न होता
जुरअत क़लंदर बख़्श