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हुस्न शायरी | शाही शायरी

हुस्न

110 शेर

हुस्न ओ इश्क़ की लाग में अक्सर छेड़ उधर से होती है
शम्अ की शोअ'ला जब लहराई उड़ के चला परवाना भी

आरज़ू लखनवी




तुम्हारा हुस्न आराइश तुम्हारी सादगी ज़ेवर
तुम्हें कोई ज़रूरत ही नहीं बनने सँवरने की

असर लखनवी




ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
गोया छलक रहा है पियाला शराब का

असर सहबाई




फूल महकेंगे यूँही चाँद यूँही चमकेगा
तेरे होते हुए मंज़र को हसीं रहना है

अशफ़ाक़ हुसैन




हुस्न को शर्मसार करना ही
इश्क़ का इंतिक़ाम होता है

असरार-उल-हक़ मजाज़




इश्क़ का ज़ौक़-ए-नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है
हुस्न ख़ुद बे-ताब है जल्वा दिखाने के लिए

love is needlessly defamed that for vision it is keen
beauty is impatient too for its splendour to be seen

असरार-उल-हक़ मजाज़




हुस्न और इश्क़ हैं दोनों काफ़िर
दोनों में इक झगड़ा सा है

अज़ीम कुरेशी