ख़ामुशी का तो नाम होता है
वर्ना यूँ भी कलाम होता है
इश्क़ को पूछता नहीं कोई
हुस्न का एहतिराम होता है
आँख से आँख जब नहीं मिलती
दिल से दिल हम-कलाम होता है
हुस्न को शर्मसार करना ही
इश्क़ का इंतिक़ाम होता है
अल्लाह अल्लाह ये नाज़-ए-हुस्न 'मजाज़'
इंतिज़ार-ए-सलाम होता है
ग़ज़ल
ख़ामुशी का तो नाम होता है
असरार-उल-हक़ मजाज़