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हुस्न शायरी | शाही शायरी

हुस्न

110 शेर

हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ
कि हैराँ देख कर आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो

बहादुर शाह ज़फ़र




बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम
मुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है

बशीर बद्र




हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे

बशीर बद्र




वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

बशीर बद्र




आइना देख कर वो ये समझे
मिल गया हुस्न-ए-बे-मिसाल हमें

बेख़ुद देहलवी




न देखना कभी आईना भूल कर देखो
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी




हुस्न भी कम्बख़्त कब ख़ाली है सोज़-ए-इश्क़ से
शम्अ भी तो रात भर जलती है परवाने के साथ

when is poor beauty saved from the
along with the moths all night the flame did surely burn

बिस्मिल सईदी