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कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं | शाही शायरी
kab mera nasheman ahl-e-chaman gulshan mein gawara karte hain

ग़ज़ल

कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं

क़मर जलालवी

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कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
ग़ुंचे अपनी आवाज़ों में बिजली को पुकारा करते हैं

when did the people in the park, my humble refuge like?
buds in their voices shrill and stark, bid lightning to strike

अब नज़्अ' का आलम है मुझ पर तुम अपनी मोहब्बत वापस लो
जब कश्ती डूबने लगती है तो बोझ उतारा करते हैं

my end is near I'm on the brink, take back the love bestowed
whenever a ship's about to sink, it's prudent to unload

जाती हुई मय्यत देख के भी वल्लाह तुम उठ के आ न सके
दो चार क़दम तो दुश्मन भी तकलीफ़ गवारा करते हैं

inspite of seeing my hearse go by, she did not condescend
at such times even foes comply, take trouble to attend

बे-वजह न जाने क्यूँ ज़िद है उन को शब-ए-फ़ुर्क़त वालों से
वो रात बढ़ा देने के लिए गेसू को सँवारा करते हैं

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पोंछो न अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दो
सुनते हैं कि शबनम के क़तरे फूलों को निखारा करते हैं

wipe not the droplets from your face, let beauty's lustre grow
drops of dew when flowers grace, enhance their freshness so

कुछ हुस्न ओ इश्क़ में फ़र्क़ नहीं है भी तो फ़क़त रुस्वाई का
तुम हो कि गवारा कर न सके हम हैं कि गवारा करते हैं

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तारों की बहारों में भी 'क़मर' तुम अफ़्सुर्दा से रहते हो
फूलों को तो देखो काँटों में हँस हँस के गुज़ारा करते हैं

tho starry climes and sunlit morns, you stay mournful, pining
see these flowers despite the thorns,stay radiant and shining