लब-ए-ख़ामोश से इफ़्शा होगा
राज़ हर रंग में रुस्वा होगा
दिल के सहरा में चली सर्द हवा
अब्र गुलज़ार पे बरसा होगा
तुम नहीं थे तो सर-ए-बाम-ए-ख़याल
याद का कोई सितारा होगा
किस तवक़्क़ो पे किसी को देखें
कोई तुम से भी हसीं क्या होगा
ज़ीनत-ए-हल्क़ा-ए-आग़ोश बनो
दूर बैठोगे तो चर्चा होगा
जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा
आज की रात भी तन्हा ही कटी
आज के दिन भी अंधेरा होगा
किस क़दर कर्ब से चटकी है कली
शाख़ से गुल कोई टूटा होगा
उम्र भर रोए फ़क़त इस धुन में
रात भीगी तो उजाला होगा
सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तन्हा होगा
ग़ज़ल
लब-ए-ख़ामोश से इफ़्शा होगा
अहमद नदीम क़ासमी