किसी की शख़्सियत मजरूह कर दी
ज़माने भर में शोहरत हो रही है
अहमद अशफ़ाक़
अहल-ए-हवस तो ख़ैर हवस में हुए ज़लील
वो भी हुए ख़राब, मोहब्बत जिन्हों ने की
अहमद मुश्ताक़
ख़ैर बदनाम तो पहले भी बहुत थे लेकिन
तुझ से मिलना था कि पर लग गए रुस्वाई को
अहमद मुश्ताक़
सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तन्हा होगा
अहमद नदीम क़ासमी
तंग आ गया हूँ वुस्अत-ए-मफ़हूम-ए-इश्क़ से
निकला जो हर्फ़ मुँह से वो अफ़्साना हो गया
अहसन मारहरवी
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए
कह दो बे इस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
मेरी रुस्वाई अगर साथ न देती मेरा
यूँ सर-ए-बज़्म मैं इज़्ज़त से निकलता कैसे
अख्तर शुमार