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Ruswai शायरी | शाही शायरी

Ruswai

40 शेर

इस शहर में तो कुछ नहीं रुस्वाई के सिवा
ऐ 'दिल' ये इश्क़ ले के किधर आ गया तुझे

दिल अय्यूबी




अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है
दूसरी औरत पहली जैसी कब होती है

फ़े सीन एजाज़




यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी

गुलज़ार




सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के
ज़िंदगी जीते हैं कुछ लोग ख़सारा कर के

हाशिम रज़ा जलालपुरी




वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे
गली गली मिरी रुस्वाइयों का साथी हो

इफ़्तिख़ार आरिफ़




अब तू दरवाज़े से अपने नाम की तख़्ती उतार
लफ़्ज़ नंगे हो गए शोहरत भी गाली हो गई

इक़बाल साजिद




प्यार करने भी न पाया था कि रुस्वाई मिली
जुर्म से पहले ही मुझ को संग-ए-ख़म्याज़ा लगा

इक़बाल साजिद