EN اردو
4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

Every evening was, by hope, sustained
This evening's desperation makes me weep

शकील बदायुनी




कभी मय-कदा कभी बुत-कदा कभी काबा तो कभी ख़ानक़ाह
ये तिरी तलब का जुनून था मुझे कब किसी से लगाव था

At times taverns, temples times, mosques and times, monasteries
`twas frenzy of my search for you, else when was I attached to these.

शमीम अब्बास




लीजिए बुला लिया आप को ख़याल में
अब तो देखिए हमें कोई देखता नहीं

now that I have invited you in my reverie
you can look upon me, none is there to see

शमीम करहानी




लीजिए बुला लिया आप को ख़याल में
अब तो देखिए हमें कोई देखता नहीं

now that I have invited you in my reverie
you can look upon me, none is there to see

शमीम करहानी




जिस लब के ग़ैर बोसे लें उस लब से 'शेफ़्ता'
कम्बख़्त गालियाँ भी नहीं मेरे वास्ते

those lips that others get to kiss alas on them I see
not even curses or abuse are now assigned for me

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता




अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे

being agitated I express the hope to die, although
in death, if solace is not found, then where shall I go?

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे

being agitated I express the hope to die, although
in death, if solace is not found, then where shall I go?

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़