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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत
लेते न कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत

had I known this is how love would end
even its name would not cross my lips my friend

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे

he who is stricken by love, remembers naught at all
no cure will come to mind, nor prayer will recall

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




निकालूँ किस तरह सीने से अपने तीर-ए-जानाँ को
न पैकाँ दिल को छोड़े है न दिल छोड़े है पैकाँ को

how do I from my breast dislodge my love's arrow
this barb doesn’t leave my heart nor does my heart let go

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




निकालूँ किस तरह सीने से अपने तीर-ए-जानाँ को
न पैकाँ दिल को छोड़े है न दिल छोड़े है पैकाँ को

how do I from my breast dislodge my love's arrow
this barb doesn’t leave my heart nor does my heart let go

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
ऐसी हैं जैसे ख़्वाब की बातें

in old age talk of youth now seems
to be just like the stuff of dreams

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




आप जाते तो हैं उस बज़्म में 'शिबली' लेकिन
हाल-ए-दिल देखिए इज़हार न होने पाए

shiblii you do go to her gathering today
make sure your heart's condition is kept hidden away

शिबली नोमानी




चारागरी की बात किसी और से करो
अब हो गए हैं यारो पुराने मरीज़ हम

talk not of cure to me my friends,nor of therapy
I am a chronic patient now, well past remedy

शुजा ख़ावर