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ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया | शाही शायरी
ai mohabbat tere anjam pe rona aaya

ग़ज़ल

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया

शकील बदायुनी

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ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया

Love your sad conclusion makes me weep
Wonder why your mention makes me weep

यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

Every evening was, by hope, sustained
This evening's desperation makes me weep

कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया

Lamenting fate, complaining of this life
In course of love each station makes me weep

मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरी
इस क़दर गर्दिश-ए-अय्याम पे रोना आया

The cycle of all mourning stops at me
Life's inconstant rotation makes me weep

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

Whenever talk of happiness I hear
My failure and frustration makes me weep