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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

इक ग़लत-फ़हमी ने दिल का आइना धुँदला दिया
इक ग़लत-फ़हमी से बरसों की शनासाई गई

one misunderstanding fogged the mirror of the heart
one misunderstanding rent lifelong friends apart

शहबाज़ नदीम ज़ियाई




ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम था
पी गए कुछ और कुछ छलका गए

life was a cup of teardrops unallayed
some were drunk and some were idly sprayed

शाहिद कबीर




जिस को जाना ही नहीं उस को ख़ुदा क्यूँ मानें
और जिसे जान चुके हो वो ख़ुदा कैसे हो

the one we do not know, how can we God decree
and the one we do know, then God how can he be

शहज़ाद अहमद




जिस को जाना ही नहीं उस को ख़ुदा क्यूँ मानें
और जिसे जान चुके हो वो ख़ुदा कैसे हो

the one we do not know, how can we God decree
and the one we do know, then God how can he be

शहज़ाद अहमद




ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया

Love your sad conclusion makes me weep
Wonder why your mention makes me weep

शकील बदायुनी




ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया

Love your sad conclusion makes me weep
Wonder why your mention makes me weep

शकील बदायुनी




बुज़-दिली होगी चराग़ों को दिखाना आँखें
अब्र छट जाए तो सूरज से मिलाना आँखें

would be cowardice to stare down at the flame
let the clouds disperse then look upon the sun

शकील बदायुनी