ऐ 'ज़ौक़' तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर
आराम में है वो जो तकल्लुफ़ नहीं करता
save trouble, in formality, zauq nothing else can be
at ease he then remains he who, eschews formality
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता
आसमाँ आँख के तिल में है दिखाई देता
even to tiny creatures God greatness does provide
in the pupil of the eye skies can be espied
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में
बूँद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई
a single tear caused my fall in her company
just a drop of water drowned my dignity
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
हक़ ने तुझ को इक ज़बाँ दी और दिए हैं कान दो
इस के ये मअ'नी कहे इक और सुने इंसान दो
the lord did on our face one mouth and two ears array
for to listen twich as much as we are wont to say
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
कल जहाँ से कि उठा लाए थे अहबाब मुझे
ले चला आज वहीं फिर दिल-ए-बे-ताब मुझे
the place from where my friends had picked me yesterday
my restless heart takes me again to that place today
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
कितने मुफ़लिस हो गए कितने तवंगर हो गए
ख़ाक में जब मिल गए दोनों बराबर हो गए
however many paupers passed, and wealthy went and came
when they were consigned to dust they were all the same
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
जो ख़्वाब में भी रात को तन्हा नहीं आता
I wonder to what misgivings she is prone
that even in my dreams she's not alone
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़