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मोहब्बत शायरी | शाही शायरी

मोहब्बत

86 शेर

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए

ख़ुमार बाराबंकवी




मोहब्बत को छुपाए लाख कोई छुप नहीं सकती
ये वो अफ़्साना है जो बे-कहे मशहूर होता है

लाला माधव राम जौहर




मोहब्बत का उन को यक़ीं आ चला है
हक़ीक़त बने जा रहे हैं फ़साने

महेश चंद्र नक़्श




इब्तिदा वो थी कि जीने के लिए मरता था मैं
इंतिहा ये है कि मरने की भी हसरत न रही

At the start, life prolonged,was my deep desire
now at the end, even for death, I do not aspire

माहिर-उल क़ादरी




हम को किस के ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
किस ने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही

मसरूर अनवर




दिल मुझे उस गली में ले जा कर
और भी ख़ाक में मिला लाया

मीर तक़ी मीर




मिरे सलीक़े से मेरी निभी मोहब्बत में
तमाम उम्र मैं नाकामियों से काम लिया

in my own way I have dealt with love you see
all my life I made my failures work for me

मीर तक़ी मीर