बार-हा गोर-ए-दिल झंका लाया
अब के शर्त-ए-वफ़ा बजा लाया
क़द्र रखती न थी मता-ए-दिल
सारे आलम में मैं दिखा लाया
दिल कि यक क़तरा ख़ूँ नहीं है बेश
एक आलम के सर बला लाया
सब पे जिस बार ने गिरानी की
उस को ये ना-तवाँ उठा लाया
दिल मुझे उस गली में ले जा कर
और भी ख़ाक में मिला लाया
इब्तिदा ही में मर गए सब यार
इश्क़ की कौन इंतिहा लाया
अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
ग़ज़ल
बार-हा गोर-ए-दिल झंका लाया
मीर तक़ी मीर