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मोहब्बत शायरी | शाही शायरी

मोहब्बत

86 शेर

वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

fealty I seek from you, O my faithless friend
behold my innocence and, see what I intend

हसरत मोहानी




किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं
तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल




आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब
ख़ुद-फ़रेबी ही मोहब्बत का सिला हो जैसे

इक़बाल अज़ीम




लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से

जाँ निसार अख़्तर




याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है

जमाल एहसानी




एक चेहरा है जो आँखों में बसा रहता है
इक तसव्वुर है जो तन्हा नहीं होने देता

जावेद नसीमी




दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं

जिगर मुरादाबादी