दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद
जिगर मुरादाबादी
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
जिगर मुरादाबादी
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
जोश मलीहाबादी
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
कैफ़ी आज़मी
दिल थाम के करवट पे लिए जाऊँ हूँ करवट
वो आग लगी है कि बुझाए न बने है
कलीम आजिज़
ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थी
मजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी
कलीम आजिज़