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मोहब्बत शायरी | शाही शायरी

मोहब्बत

86 शेर

इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते

फ़रहत एहसास




मिरे सारे बदन पर दूरियों की ख़ाक बिखरी है
तुम्हारे साथ मिल कर ख़ुद को धोना चाहता हूँ मैं

फ़रहत एहसास




एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी




कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं

if someone were to listen, one thing I will opine
Love is not a crime forsooth it is grace divine

फ़िराक़ गोरखपुरी




करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर




सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
ये आग वो है जिस को दबाया न जाएगा

हमीद जालंधरी




चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

हसरत मोहानी