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Hijr शायरी | शाही शायरी

Hijr

86 शेर

तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो
मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो

जौन एलिया




साँस लेने में दर्द होता है
अब हवा ज़िंदगी की रास नहीं

जिगर बरेलवी




तुम नहीं पास कोई पास नहीं
अब मुझे ज़िंदगी की आस नहीं

जिगर बरेलवी




आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं

जिगर मुरादाबादी




आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रौशन

जिगर मुरादाबादी




मिरी ज़िंदगी तो गुज़री तिरे हिज्र के सहारे
मिरी मौत को भी प्यारे कोई चाहिए बहाना

जिगर मुरादाबादी




यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं

जिगर मुरादाबादी