हिज्र की रात काटने वाले
क्या करेगा अगर सहर न हुई
अज़ीज़ लखनवी
ख़ुद चले आओ या बुला भेजो
रात अकेले बसर नहीं होती
अज़ीज़ लखनवी
मैं तेरे हिज्र में जीने से हो गया था उदास
पे गर्म-जोशी से क्या क्या मनाया अश्क मिरा
बाक़र आगाह वेलोरी
तुझ हिज्र की अगन कूँ बूझाने ऐ संग दिल
कोई आब-ज़न-रफ़ीक़ ब-जुज़ चश्म-ए-तर नहीं
दाऊद औरंगाबादी
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे
शब-ए-फ़िराक़ ये कह कर गुज़ार दी हम ने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हिज्र में मुस्कुराए जा दिल में उसे तलाश कर
नाज़-ए-सितम उठाए जा राज़-ए-सितम न फ़ाश कर
फ़ानी बदायुनी