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Hijr शायरी | शाही शायरी

Hijr

86 शेर

देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को
हिज्र अच्छा न हसीनों का विसाल अच्छा है

अमीर मीनाई




फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
कभी तकिया इधर रक्खा कभी तकिया उधर रक्खा

अमीर मीनाई




तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ का क़िस्सा न पूछिए
महशर तलक कहूँ मैं अगर मुख़्तसर कहूँ

अमीर मीनाई




कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए
दिगर-गूँ हैं मिरे हालात जब से तुम नहीं आए

अनवर शऊर




लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो
नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए

अनवर शऊर




अब तिरे हिज्र में यूँ उम्र बसर होती है
शाम होती है तो रो रो के सहर होती है

अनवापुल हसन अनवार




हर इश्क़ के मंज़र में था इक हिज्र का मंज़र
इक वस्ल का मंज़र किसी मंज़र में नहीं था

अक़ील अब्बास जाफ़री