तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो
मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
तुम्हारे बा'द भला क्या हैं वअदा-ओ-पैमाँ
बस अपना वक़्त गँवा लूँ अगर इजाज़त हो
तुम्हारे हिज्र की शब-हा-ए-कार में जानाँ
कोई चराग़ जला लूँ अगर इजाज़त हो
जुनूँ वही है वही मैं मगर है शहर नया
यहाँ भी शोर मचा लूँ अगर इजाज़त हो
किसे है ख़्वाहिश-ए-मरहम-गरी मगर फिर भी
मैं अपने ज़ख़्म दिखा लूँ अगर इजाज़त हो
तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी
कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो
ग़ज़ल
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो
जौन एलिया