किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है
किसे बताएँ हमारा जो हाल हो गया है
अजमल सिराज
आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती
अकबर इलाहाबादी
वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर'
जागना रात भर मुसीबत है
whether in blissful union or in separation
staying up all night, is a botheration
अकबर इलाहाबादी
वो अगर आ न सके मौत ही आई होती
हिज्र में कोई तो ग़म-ख़्वार हमारा होता
अख़्तर शीरानी
हिज्र की रात ये हर डूबते तारे ने कहा
हम न कहते थे न आएँगे वो आए तो नहीं
अली जव्वाद ज़ैदी
चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़े मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िर
न नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ
अमीर ख़ुसरो
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ रोज़-ए-वसलत चू उम्र कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ
अमीर ख़ुसरो