प्यासा मत जला साक़ी मुझे गर्मी सीं हिज्राँ की
शिताबी ला शराब-ए-ख़ाम हम ने दिल को भूना है
अब्दुल वहाब यकरू
तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो
तुम्हीं जिगर हो तुम्हीं जान हो तुम्हीं दिल हो
अफ़सर इलाहाबादी
तारों का गो शुमार में आना मुहाल है
लेकिन किसी को नींद न आए तो क्या करे
अफ़सर मेरठी
हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता
एक ही इश्क़ दोबारा तो नहीं हो सकता
अफ़ज़ल गौहर राव
ब-ज़ाहिर एक ही शब है फ़िराक़-ए-यार मगर
कोई गुज़ारने बैठे तो उम्र सारी लगे
अहमद फ़राज़
दो घड़ी उस से रहो दूर तो यूँ लगता है
जिस तरह साया-ए-दीवार से दीवार जुदा
अहमद फ़राज़
'फ़राज़' इश्क़ की दुनिया तो ख़ूब-सूरत थी
ये किस ने फ़ित्ना-ए-हिज्र-ओ-विसाल रक्खा है
अहमद फ़राज़