अच्छे दिन कब आएँगे
क्या यूँ ही मर जाएँगे
मोहम्मद अल्वी
अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
लिफ़ाफ़े में कुछ रौशनी भेज दे
मोहम्मद अल्वी
अब तो चुप-चाप शाम आती है
पहले चिड़ियों के शोर होते थे
मोहम्मद अल्वी
अब न 'ग़ालिब' से शिकायत है न शिकवा 'मीर' का
बन गया मैं भी निशाना रेख़्ता के तीर का
मोहम्मद अल्वी
अब किसी की याद भी आती नहीं
दिल पे अब फ़िक्रों के पहरे हो गए
मोहम्मद अल्वी
आसमान पर जा पहुँचूँ
अल्लाह तेरा नाम लिखूँ
मोहम्मद अल्वी
आज फिर मुझ से कहा दरिया ने
क्या इरादा है बहा ले जाऊँ
मोहम्मद अल्वी
आग अपने ही लगा सकते हैं
ग़ैर तो सिर्फ़ हवा देते हैं
मोहम्मद अल्वी
आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
'अल्वी' प्यारे देखो साला दिन निकला
मोहम्मद अल्वी