धूप में सब रंग गहरे हो गए
तितलियों के पर सुनहरे हो गए
सामने दीवार पर कुछ दाग़ थे
ग़ौर से देखा तो चेहरे हो गए
अब न सुन पाएँगे हम दिल की पुकार
सुनते सुनते कान बहरे हो गए
अब किसी की याद भी आती नहीं
दिल पे अब फ़िक्रों के पहरे हो गए
आओ 'अल्वी' अब तो अपने घर चलें
दिन बहुत दिल्ली में ठहरे हो गए
ग़ज़ल
धूप में सब रंग गहरे हो गए
मोहम्मद अल्वी