और बाज़ार से क्या ले जाऊँ
पहली बारिश का मज़ा ले जाऊँ
कुछ तो सौग़ात दूँ घर वालों को
रात आँखों में सजा ले जाऊँ
घर में सामाँ तो हो दिलचस्पी का
हादिसा कोई उठा ले जाऊँ
इक दिया देर से जलता होगा
साथ थोड़ी सी हवा ले जाऊँ
क्यूँ भटकता हूँ ग़लत राहों में
ख़्वाब में उस का पता ले जाऊँ
रोज़ कहता है हवा का झोंका
आ तुझे दूर उड़ा ले जाऊँ
आज फिर मुझ से कहा दरिया ने
क्या इरादा है बहा ले जाऊँ
घर से जाता हूँ तो काम आएँगे
एक दो अश्क बचा ले जाऊँ
जेब में कुछ तो रहेगा 'अल्वी'
लाओ तुम सब की दुआ ले जाऊँ
ग़ज़ल
और बाज़ार से क्या ले जाऊँ
मोहम्मद अल्वी