सुब्ह से खोद रहा हूँ घर को
ख़्वाब देखा है ख़ज़ाने वाला
मोहम्मद अल्वी
तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तू ख़ुश न हो
उस को तिरी बुराइयाँ करते हुए भी देख
मोहम्मद अल्वी
थोड़ी सर्दी ज़रा सा नज़ला है
शायरी का मिज़ाज पतला है
मोहम्मद अल्वी
तिरा न मिलना अजब गुल खिला गया अब के
तिरे ही जैसा कोई दूसरा मिला मुझ को
मोहम्मद अल्वी
तुड़ा-मुड़ा है मगर ख़ुदा है
इसे तो साहब सँभाल रखिए
मोहम्मद अल्वी
उन दिनों घर से अजब रिश्ता था
सारे दरवाज़े गले लगते थे
मोहम्मद अल्वी
उन को गुनाह करते हुए मैं ने जा लिया
फिर उन के साथ मैं भी गुनहगार हो गया
मोहम्मद अल्वी
उस से भी मिल कर हमें मरने की हसरत रही
उस ने भी जाने दिया वो भी सितमगर न था
मोहम्मद अल्वी
उस से बिछड़ते वक़्त मैं रोया था ख़ूब-सा
ये बात याद आई तो पहरों हँसा किया
मोहम्मद अल्वी