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मीर तक़ी मीर शायरी | शाही शायरी

मीर तक़ी मीर शेर

120 शेर

बहुत कुछ कहा है करो 'मीर' बस
कि अल्लाह बस और बाक़ी हवस

मीर तक़ी मीर




बज़्म-ए-इशरत में मलामत हम निगूँ बख़्तों के तईं
जूँ हुबाब-ए-बादा साग़र सर-निगूँ हो जाएगा

मीर तक़ी मीर




बे-ख़ुदी ले गई कहाँ हम को
देर से इंतिज़ार है अपना

मीर तक़ी मीर




बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता

I sacrifice my heart upon your infidelity
were you faithful it would be a calamity

मीर तक़ी मीर




बुलबुल ग़ज़ल-सराई आगे हमारे मत कर
सब हम से सीखते हैं अंदाज़ गुफ़्तुगू का

मीर तक़ी मीर




चाह का दावा सब करते हैं मानें क्यूँकर बे-आसार
अश्क की सुर्ख़ी मुँह की ज़र्दी इश्क़ की कुछ तो अलामत हो

मीर तक़ी मीर




चमन में गुल ने जो कल दावा-ए-जमाल किया
जमाल-ए-यार ने मुँह उस का ख़ूब लाल किया

मीर तक़ी मीर




चश्म हो तो आईना-ख़ाना है दहर
मुँह नज़र आता है दीवारों के बीच

मीर तक़ी मीर




दावा किया था गुल ने तिरे रुख़ से बाग़ में
सैली लगी सबा की तो मुँह लाल हो गया

मीर तक़ी मीर