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मीर तक़ी मीर शायरी | शाही शायरी

मीर तक़ी मीर शेर

120 शेर

मसाइब और थे पर दिल का जाना
अजब इक सानेहा सा हो गया है

मीर तक़ी मीर




मत रंजा कर किसी को कि अपने तू ए'तिक़ाद
दिल ढाए कर जो काबा बनाया तो क्या हुआ

मीर तक़ी मीर




मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं

मीर तक़ी मीर




मेरे रोने की हक़ीक़त जिस में थी
एक मुद्दत तक वो काग़ज़ नम रहा

where the true saga of my weeping was contained
sodden, moist for ages then, that paper remained

मीर तक़ी मीर




'मीर' अमदन भी कोई मरता है
जान है तो जहान है प्यारे

मीर तक़ी मीर




'मीर' बंदों से काम कब निकला
माँगना है जो कुछ ख़ुदा से माँग

मीर तक़ी मीर




'मीर' हम मिल के बहुत ख़ुश हुए तुम से प्यारे
इस ख़राबे में मिरी जान तुम आबाद रहो

मीर तक़ी मीर




'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया

Why is it you seek to know, of Miir's religion, sect, for he
Sits in temples, painted brow, well on the road to heresy

मीर तक़ी मीर




'मीर' को क्यूँ न मुग़्तनिम जाने
अगले लोगों में इक रहा है ये

मीर तक़ी मीर