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दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता | शाही शायरी
dard-e-dil kuchh kaha nahin jata

ग़ज़ल

दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता

क़ाएम चाँदपुरी

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दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता
आह चुप भी रहा नहीं जाता

रू-ब-रू मेरे ग़ैर से तू मिले
ये सितम तो सहा नहीं जाता

शिद्दत-ए-गिर्या से मैं ख़ून में कब
सर से पा तक नहा नहीं जाता

हर दम आने से मैं भी हूँ नादिम
क्या करूँ पर रहा नहीं जाता

माना-ए-गिर्या किस की ख़ू है कि आज
आँसुओं से बहा नहीं जाता

गरचे 'क़ाएम' असीर-ए-दाम हूँ लेक
मुझ से ये चहचहा नहीं जाता