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जिंदगी शायरी | शाही शायरी

जिंदगी

163 शेर

इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी

अब्दुल हमीद अदम




ज़िंदगी ज़ोर है रवानी का
क्या थमेगा बहाव पानी का

अब्दुल हमीद अदम




जो उन्हें वफ़ा की सूझी तो न ज़ीस्त ने वफ़ा की
अभी आ के वो न बैठे कि हम उठ गए जहाँ से

अब्दुल मजीद सालिक




इश्क़ के मज़मूँ थे जिन में वो रिसाले क्या हुए
ऐ किताब-ए-ज़िंदगी तेरे हवाले क्या हुए

अबु मोहम्मद सहर




किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के

आदिल मंसूरी




कुछ और तरह की मुश्किल में डालने के लिए
मैं अपनी ज़िंदगी आसान करने वाला हूँ

आफ़ताब हुसैन




ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ
सोचते रहिए कि इस ख़्वाब की ताबीर है क्या

अहमद अता