ज़िंदगी और हैं कितने तिरे चेहरे ये बता
तुझ से इक उम्र की हालाँकि शनासाई है
अमीर क़ज़लबाश
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कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
यूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं
अंजुम रहबर
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ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहाँ
हसरतों में शुमार होता है
अनवर शऊर
मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं
ज़िंदगी भी जान ले कर जाएगी
अर्श मलसियानी
हर नफ़स इक शराब का हो घूँट
ज़िंदगानी हराम है वर्ना
आरज़ू लखनवी
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ज़िंदगी और ज़िंदगी की यादगार
पर्दा और पर्दे पे कुछ परछाइयाँ
असर लखनवी
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लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैं
कौन सा सेहर तिरी चश्म-ए-इनायत में नहीं
असग़र गोंडवी
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