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वफा शायरी | शाही शायरी

वफा

80 शेर

फ़रेब खाने को पेशा बना लिया हम ने
जब एक बार वफ़ा का फ़रेब खा बैठे

अहमद नदीम क़ासमी




बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें
बूढ़ों को भी जो मौत न आए तो क्या करें

अकबर इलाहाबादी




इन वफ़ादारी के वादों को इलाही क्या हुआ
वो वफ़ाएँ करने वाले बेवफ़ा क्यूँ हो गए

अख़्तर शीरानी




काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें
उस बेवफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें

अख़्तर शीरानी




ये और बात कि इक़रार कर सकें न कभी
मिरी वफ़ा का मगर उन को ए'तिबार तो है

अलीम अख़्तर




वो उम्मीद क्या जिस की हो इंतिहा
वो व'अदा नहीं जो वफ़ा हो गया

अल्ताफ़ हुसैन हाली




कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद

after I am gone, your torture who will bear
you'll miss my devotion, when I am not there

अमीर मीनाई