न मुदारात हमारी न अदू से नफ़रत
न वफ़ा ही तुम्हें आई न जफ़ा ही आई
बेखुद बदायुनी
वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
कहा था तुम ने इस से पेशतर क्या
बेख़ुद देहलवी
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उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा'दा न वफ़ा करते वा'दा तो किया होता
चराग़ हसन हसरत
जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा
बार-हा आज़मा के देख लिया
दाग़ देहलवी
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
दाग़ देहलवी
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
दाग़ देहलवी
वफ़ा पर दग़ा सुल्ह में दुश्मनी है
भलाई का हरगिज़ ज़माना नहीं है
दत्तात्रिया कैफ़ी