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वफा शायरी | शाही शायरी

वफा

80 शेर

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो

अमीर मीनाई




दोस्ती बंदगी वफ़ा-ओ-ख़ुलूस
हम ये शम्अ' जलाना भूल गए

अंजुम लुधियानवी




कैसी हया कहाँ की वफ़ा पास-ए-ख़ल्क़ क्या
हाँ ये सही कि आप को आना यहाँ न था

अनवर देहलवी




जो सज़ा दीजे है बजा मुझ को
तुझ से करनी न थी वफ़ा मुझ को

whatever punishment you mete, will be surely meet,
i should not have loved you so, my freedom is forfeit

असर लखनवी




ग़लत-रवी को तिरी मैं ग़लत समझता हूँ
ये बेवफ़ाई भी शामिल मिरी वफ़ा में है

आसिम वास्ती




तुम्हारे साथ मिरे मुख़्तलिफ़ मरासिम हैं
मिरी वफ़ा पे कभी इन्हिसार मत करना

आसिम वास्ती




वफ़ा के नाम पर पैरा किए कच्चे घड़े ले कर
डुबोया ज़िंदगी को दास्ताँ-दर-दास्ताँ हम ने

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा